वीर सावरकर का जीवन परिचय – Veer Savarkar Biography In Hindi

वीर सावरकर, जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, कवि, विचारक और हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे। Veer Savarkar का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। सावरकर का जीवन संघर्ष, बलिदान और राष्ट्रवाद की भावना से भरा हुआ है।

वीर सावरकर, जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, कवि, विचारक और हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे। Veer Savarkar का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। सावरकर का जीवन संघर्ष, बलिदान और राष्ट्रवाद की भावना से भरा हुआ है। Veer Savarkar ने अपने जीवन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का समर्थन किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। Veer Savarkar का जीवन परिचय न केवल एक क्रांतिकारी का चित्र प्रस्तुत करता है, बल्कि एक बुद्धिजीवी और समाज सुधारक की छवि को भी उजागर करता है। यहाँ Veer Savarkar के जीवन का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है।

वीर सावरकर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा


वीर सावरकर का जन्म एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। Veer Savarkar के पिता दामोदर पंत सावरकर एक शिक्षित और देशभक्त व्यक्ति थे, जबकि Veer Savarkar की माता राधाबाई एक धार्मिक और साहसी महिला थीं। सावरकर चार भाई-बहनों में दूसरे थे। Veer Savarkar के बड़े भाई गणेश (बाबाराव) और छोटे भाई नारायण भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। बचपन से ही सावरकर में असाधारण बुद्धिमत्ता और देशभक्ति की भावना दिखाई दी। 1893 में जब प्लेग की महामारी फैली, तब सावरकर ने अपनी माँ को खो दिया और 1899 में उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। इन दुखद घटनाओं ने Veer Savarkar को कम उम्र में ही जीवन की कठिनाइयों से परिचित करा दिया।

सावरकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के शिवाजी हाई स्कूल में पूरी की। Veer Savarkar पढ़ाई में मेधावी थे और इतिहास, साहित्य और कविता में उनकी गहरी रुचि थी। 1901 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लिया। यहाँ Veer Savarkar की मुलाकात लोकमान्य तिलक जैसे राष्ट्रवादी नेताओं से हुई, जिन्होंने उनके विचारों को प्रभावित किया। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया और देशभक्ति से ओत-प्रोत लेखन के माध्यम से युवाओं को जागृत करने का प्रयास किया।

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वीर सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत


सावरकर ने बहुत कम उम्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। 1904 में उन्होंने “अभिनव भारत” नामक एक गुप्त संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत को स्वतंत्र करना था। इस संगठन ने युवाओं को एकत्र किया और उन्हें हथियारों का प्रशिक्षण देना शुरू किया। Veer Savarkar ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन को भी बढ़ावा दिया। 1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ, तो उन्होंने इसके विरोध में पुणे में विदेशी कपड़ों की होली जलाई, जिसके कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया।

1906 में Veer Savarkar को लंदन के लिए बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली। वे लंदन के ग्रे’स इन में पढ़ाई करने गए, लेकिन उनका असली मकसद भारत के बाहर क्रांतिकारी गतिविधियों को संगठित करना था। लंदन में उन्होंने “इंडिया हाउस” को अपने क्रांतिकारी कार्यों का केंद्र बनाया। यहाँ उनकी मुलाकात श्यामजी कृष्ण वर्मा, मदनलाल ढींगरा और अन्य क्रांतिकारियों से हुई। सावरकर ने भारतीय युवाओं को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।

वीर सावरकर का 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर पुस्तक


सावरकर
ने 1857 के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया और इस पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक था *The History of the War of Indian Independence*। यह पुस्तक 1909 में प्रकाशित हुई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। इस पुस्तक में सावरकर ने 1857 के विद्रोह को एक सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया और इसे केवल “सिपाही विद्रोह” कहने की ब्रिटिश व्याख्या को खारिज किया। इस पुस्तक को गुप्त रूप से भारत और अन्य देशों में पहुँचाया गया, जिसने क्रांतिकारियों के बीच नई चेतना जागृत की।

वीर सावरकर की गिरफ्तारी और काला पानी की सजा


लंदन में सावरकर की गतिविधियाँ ब्रिटिश सरकार की नजर में आ गईं। 1909 में Veer Savarkar के सहयोगी मदनलाल ढींगरा ने कर्जन वायली की हत्या कर दी, जिसके बाद सावरकर पर नजर रखी जाने लगी। 1910 में उन्हें लंदन में गिरफ्तार किया गया और भारत लाने के लिए एक जहाज *एस.एस. मोरिया* पर भेजा गया। Veer Savarkar ने जहाज से फ्रांस के मार्साय बंदरगाह पर कूदकर भागने की कोशिश की, लेकिन वे पकड़े गए। यह घटना उनकी वीरता और साहस का प्रतीक बन गई।

भारत लाने के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और 1911 में उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जो कुल 50 वर्ष की थी। उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल (काला पानी) में भेजा गया। वहाँ की अमानवीय परिस्थितियों में भी Veer Savarkar ने हार नहीं मानी। उन्होंने जेल में कविताएँ लिखीं, जिनमें से कई को कोयले से दीवारों पर उकेरा गया। उनकी प्रसिद्ध कविता “जयोस्तुते” इस काल की देन है।

वीर सावरकर की जेल से रिहाई और हिंदुत्व का विचार


1924 में सावरकर को सशर्त रिहा किया गया और उन्हें रत्नागिरी में नजरबंद कर दिया गया। इस दौरान Veer Savarkar सक्रिय राजनीति से दूर रहे, लेकिन लेखन और सामाजिक सुधार के कार्यों में जुट गए। 1923 में Veer Savarkar ने अपनी पुस्तक *Hindutva: Who is a Hindu?* प्रकाशित की, जिसमें हिंदुत्व को एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में परिभाषित किया। सावरकर का मानना था कि हिंदुत्व केवल धार्मिक अवधारणा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का आधार है।

रत्नागिरी में उन्होंने छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया। Veer Savarkar ने मंदिरों में अछूतों के प्रवेश का समर्थन किया और अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि हिंदू समाज को संगठित और शक्तिशाली बनाना स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।

वीर सावरकर का बाद का जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान


1937 में नजरबंदी से मुक्त होने के बाद सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों से ब्रिटिश सेना में भर्ती होने की अपील की, ताकि वे सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें और भविष्य में इसका उपयोग स्वतंत्रता के लिए कर सकें। यह नीति विवादास्पद रही, क्योंकि कांग्रेस ने इसका विरोध किया। सावरकर ने “एक राष्ट्र, एक संविधान” का नारा दिया और भारत के विभाजन का कड़ा विरोध किया।

1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद सावरकर को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया। इसके बावजूद, इस घटना ने उनकी छवि को प्रभावित किया। अपने अंतिम दिनों में Veer Savarkar बीमार रहे और 26 फरवरी, 1966 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उन्होंने मृत्यु से पहले भोजन और जल त्याग दिया था, जिसे उन्होंने “आत्मार्पण” कहा।

सावरकर की विरासत


वीर सावरकर
का जीवन बहुआयामी था। Veer Savarkar एक क्रांतिकारी, लेखक, कवि, इतिहासकार और समाज सुधारक थे। उनकी रचनाएँ जैसे *माझी जन्मठेप*, *सागर प्राण तळमळला* और *हिंदुपदपादशाही* आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। वे हिंदुत्व के प्रतीक बन गए, लेकिन उनके विचारों को लेकर मतभेद भी रहे। कुछ लोग उन्हें दूरदर्शी राष्ट्रवादी मानते हैं, तो कुछ उनके हिंदुत्व के विचार को संकीर्ण मानते हैं।

सावरकर ने अपने जीवन में असंख्य कष्ट सहे, लेकिन कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। Veer Savarkar की जीवनी हमें साहस, बलिदान और देशभक्ति की शिक्षा देती है। आज भी वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक अनमोल रत्न के रूप में याद किए जाते हैं।

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