रुमा देवी का प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
रुमा देवी का जन्म 16 नवंबर 1988 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के रावतसर गांव में एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता खेताराम और माता इमरती देवी थे। मात्र 4 वर्ष की उम्र में Ruma Devi ने अपनी मां को खो दिया, जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। इसके परिणामस्वरूप, रुमा देवी को उनके चाचा-चाची के पास भेज दिया गया, जहां उनका बचपन अभावों और कठिनाइयों में बीता। उस समय बाड़मेर में पानी की भारी कमी थी, और रुमा देवी को 10 किलोमीटर दूर से बैलगाड़ी पर पानी लाना पड़ता था।
उनकी शिक्षा भी आर्थिक तंगी और सामाजिक रूढ़ियों के कारण आठवीं कक्षा तक ही सीमित रह गई। 17 वर्ष की उम्र में रुमा देवी की शादी टिकुराम से हो गई, जो जोधपुर में नशा निषेध केंद्र में कार्यरत थे। शादी के कुछ समय बाद, Ruma Devi ने अपने पहले बेटे को जन्म दिया, लेकिन आर्थिक तंगी और उचित चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में उनके बेटे की 48 घंटे के भीतर मृत्यु हो गई। यह घटना उनके जीवन का सबसे दुखद मोड़ थी, लेकिन यही वह पल था जिसने रुमा देवी को कुछ करने का हौसला दिया।
रुमा देवी का हस्तशिल्प के प्रति रुझान
रुमा देवी ने बचपन में अपनी दादी से कशीदाकारी और सिलाई-कढ़ाई का हुनर सीखा था। यह कौशल उनके लिए केवल एक शौक नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने का माध्यम बन गया। शादी के बाद ससुराल में, जो बाड़मेर के मंगला की बेरी गांव में था, उन्होंने इस हुनर को और निखारा। आर्थिक तंगी से जूझते हुए Ruma Devi ने फैसला किया कि वे अपने कौशल का उपयोग न केवल अपनी, बल्कि अन्य महिलाओं की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए करेंगी।
उन्होंने 2006 में अपने ससुराल में 10 महिलाओं को एकत्र किया और एक स्वयं सहायता समूह (SHG) की शुरुआत की। प्रत्येक महिला से 100 रुपये का योगदान लेकर उन्होंने पुरानी सिलाई मशीन, कपड़ा, धागा और अन्य सामग्री खरीदी। इस छोटे से समूह ने कुशन कवर, बैग और अन्य हस्तनिर्मित उत्पाद बनाना शुरू किया। शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे सामाजिक विरोध और बाजार तक पहुंच की कमी, लेकिन रुमा देवी ने हार नहीं मानी।
रुमा देवी का ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से जुड़ाव
रुमा देवी का करियर तब नई ऊंचाइयों पर पहुंचा, जब वे 2008 में बाड़मेर के ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान (GVCS) से जुड़ीं। इस संस्थान ने महिला सशक्तिकरण और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए कार्य किया। संस्थान के संस्थापक विक्रम सिंह ने Ruma Devi के हुनर और जुनून को पहचाना और उन्हें समर्थन प्रदान किया। संस्थान ने उनके समूह को कच्चा माल, प्रशिक्षण और मार्केटिंग के गुर सिखाए।
2010 में रुमा देवी को इस संस्थान का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में समूह ने बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर के 75 गांवों में अपनी पहुंच बनाई। Ruma Devi ने महिलाओं को कांथा सिलाई, कढ़ाई, पैचवर्क और अन्य हस्तकला तकनीकों में प्रशिक्षित किया। उनके उत्पादों ने स्थानीय और विदेशी पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे समूह की आय में वृद्धि हुई। यह वह दौर था जब रुमा देवी ने अपने समूह को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाने का सपना देखा।
रुमा देवी की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान
रुमा देवी ने अपने हस्तशिल्प उत्पादों को देश-विदेश में प्रदर्शित करने के लिए कई प्रदर्शनियों और फैशन शो में भाग लिया। 2010 में उन्होंने दिल्ली के रफी मार्ग पर अपनी पहली प्रदर्शनी में हिस्सा लिया, जहां उनके उत्पादों को खूब सराहा गया। 2016 में राजस्थान हेरिटेज वीक में उनका पहला फैशन शो आयोजित हुआ, जिसने उनकी कला को व्यापक पहचान दिलाई।
Ruma Devi के नेतृत्व में उनके समूह के उत्पाद लंदन, जर्मनी, सिंगापुर, कोलंबो, थाईलैंड और श्रीलंका के फैशन वीक्स में प्रदर्शित किए गए। उनके डिजाइनों में राजस्थानी संस्कृति की झलक थी, जो आधुनिक फैशन के साथ मिश्रित थी। उनके उत्पाद, जैसे साड़ी, कुर्ता, बेडशीट और बैग, विदेशी खरीदारों के बीच खासे लोकप्रिय हुए। रुमा देवी ने अपनी वेबसाइट shop.directcreate.com के माध्यम से भी अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया।
2015 में लैक्मे फैशन वीक में उनके हस्तशिल्प परिधानों का प्रदर्शन हुआ, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। रुमा देवी ने एक साक्षात्कार में कहा, “मेरा पारंपरिक पहनावा और बाड़मेर के लिए मेरा प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता। इसकी विशिष्टता ने मुझे वह बनाया जो मैं आज हूं।”
रुमा देवी का महिला सशक्तिकरण में योगदान
रुमा देवी का सबसे बड़ा योगदान है 40,000 से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना। उन्होंने बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर के 75 गांवों में अपने सेंटर स्थापित किए, जहां महिलाओं को हस्तकला, सिलाई, डिजाइन विकास और वित्तीय साक्षरता का प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं को न केवल आर्थिक स्वतंत्रता दी, बल्कि सामाजिक सम्मान भी दिलाया।
Ruma Devi ने गांव-गांव जाकर महिलाओं को प्रेरित किया। शुरुआत में उन्हें पुरुषों के विरोध का सामना करना पड़ा, जो नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नियां या बहनें घर से बाहर काम करें। लेकिन रुमा देवी के हौसले और उनके उत्पादों की सफलता ने धीरे-धीरे लोगों का भरोसा जीत लिया। आज उनके समूह की महिलाएं प्रतिमाह 3,000 से 10,000 रुपये तक कमा रही हैं, जिससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
रुमा देवी ने रुमा देवी फाउंडेशन भी स्थापित किया, जो प्रतिभाशाली बच्चों को छात्रवृत्ति और पुरस्कार प्रदान करता है। उनकी अक्षरा योजना के तहत 50 होनहार युवाओं को कला, खेल और शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानित किया जाता है।
रुमा देवी को मिले पुरस्कार और सम्मान
रुमा देवी को उनके असाधारण योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। कुछ प्रमुख पुरस्कार निम्नलिखित हैं:
- नारी शक्ति पुरस्कार 2018: भारत में महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान, जो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया।
- डिजाइनर ऑफ द ईयर 2019: उनके हस्तशिल्प डिजाइनों के लिए।
- शिल्पा अभिमानी अवार्ड: श्रीलंका सरकार द्वारा हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए।
- सफोक काउंटी एग्जीक्यूटिव सम्मान: अमेरिका में उनकी उपलब्धियों के लिए।
- कौन बनेगा करोड़पति 2019: Ruma Devi ने कर्मवीर एपिसोड में 12.5 लाख रुपये जीते।
- हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्यान: 2020 में 17वें अखिल भारतीय सम्मेलन में पैनलिस्ट के रूप में आमंत्रित।
इसके अलावा, रुमा देवी को राजीविका और ट्राइब्स इंडिया का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया गया है। उन्होंने इंडियन आइडल (2021) और अन्य टीवी शो में भी भाग लिया।
रुमा देवी का प्रभाव और प्रेरणा
रुमा देवी की कहानी केवल एक व्यक्ति की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन हजारों महिलाओं की जीत है, जिन्हें उन्होंने आत्मनिर्भर बनाया। उनकी जिंदगी की तुलना बॉलीवुड फिल्म ‘सुई धागा’ से की जाती है, जो एक साधारण व्यक्ति के हस्तशिल्प के माध्यम से सफलता पाने की कहानी दर्शाती है।
Ruma Devi का मानना है कि मुश्किलें हर किसी के जीवन में आती हैं, लेकिन हौसला और हुनर के दम पर कोई भी अपने सपनों को पूरा कर सकता है। उन्होंने अपने अनुभवों को देश-विदेश में साझा किया, जिसमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और महात्मा ज्योति राव फुले विश्वविद्यालय जैसे मंच शामिल हैं।
रुमा देवी का निजी जीवन
रुमा देवी अपने पति टिकुराम और परिवार के साथ सादगी भरा जीवन जीती हैं। उनके पति ने उनके हर कदम पर साथ दिया, जो उनकी सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। Ruma Devi आज भी अपनी राजस्थानी वेशभूषा और संस्कृति को गर्व के साथ अपनाती हैं।
रुमा देवी एक ऐसी नारी शक्ति हैं, जिन्होंने अभावों में पलकर भी अपने सपनों को उड़ान दी। उन्होंने न केवल बाड़मेर की हस्तकला को विश्व पटल पर स्थापित किया, बल्कि हजारों महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता दी। Ruma Devi की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो यह सोचता है कि शिक्षा या संसाधनों की कमी उनकी राह में बाधा बन सकती है। उनकी मेहनत, हौसला और समर्पण ने साबित कर दिया कि सच्ची लगन के साथ कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।